सिंधु नदी तंत्र, जिसे इंडस नदी तंत्र के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण एशिया के प्रमुख नदी प्रणालियों में से एक है और इसे भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक, सिंधु घाटी सभ्यता का जनक माना जाता है। यह नदी तिब्बत से निकलती है और पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों से होते हुए अरब सागर में गिरती है। सिंधु नदी का तंत्र एक विस्तृत प्रणाली है, जिसमें कई महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ शामिल हैं, जो इसे एक शक्तिशाली नदी प्रणाली बनाती हैं। यहाँ सिंधु नदी तंत्र के प्रमुख तथ्यों, इसकी लंबाई, उत्पत्ति, विशेषताओं और इसकी सहायक नदियों का विस्तृत वर्णन दिया गया है।
सिंधु नदी तंत्र के प्रमुख तथ्य
- उत्पत्ति:
- सिंधु नदी का उद्गम तिब्बत के कैलाश पर्वत के पास, मान सरोवर झील के निकट चैम्युंगडुंग ग्लेशियर से होता है। इस स्थान पर इसे ‘सिंगा खबब’ के नाम से भी जाना जाता है।
- लंबाई:
- सिंधु नदी की कुल लंबाई लगभग 3,180 किलोमीटर है। यह दक्षिण एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है और एशिया में 12वीं सबसे लंबी नदी है।
- प्रवाह का मार्ग:
- सिंधु नदी तिब्बत से निकलकर भारत के लद्दाख क्षेत्र से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है। पाकिस्तान में यह विभिन्न राज्यों से गुजरती है, जिसमें बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध प्रमुख हैं। इसके बाद यह कराची के पास अरब सागर में मिलती है।
- जल निकासी क्षेत्र:
- सिंधु नदी का जल निकासी क्षेत्र लगभग 1,165,000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जिसमें से भारत में 321,289 वर्ग किलोमीटर, पाकिस्तान में 50 लाख हेक्टेयर और चीन में लगभग 53,100 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र शामिल है।
- विशेषताएँ:
- सिंधु नदी की विशेषता इसका वार्षिक प्रवाह है, जो मुख्यतः हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से होता है। यह नदी दक्षिण एशिया में कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है और पाकिस्तान की कृषि और पेयजल आपूर्ति का मुख्य स्रोत है।
- प्राचीन सभ्यता:
- सिंधु नदी तंत्र को सिंधु घाटी सभ्यता की जननी माना जाता है। यह प्राचीन सभ्यता सिंधु नदी के किनारे स्थित थी, जो 3300 ई.पू. से 1300 ई.पू. तक फली-फूली थी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा जैसे शहर इसी नदी के किनारे स्थित थे।
सिंधु नदी तंत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ
सिंधु नदी तंत्र में कई सहायक नदियाँ शामिल हैं, जो इसे और भी विशाल और प्रभावशाली बनाती हैं। इन सहायक नदियों में से प्रमुख नदियाँ पाँच नदियाँ हैं, जिन्हें “पंजाब” (पांच नदियों की भूमि) का नाम दिया गया है। ये नदियाँ हैं – झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। इनके अलावा अन्य सहायक नदियाँ भी हैं।
1. झेलम नदी
- उद्गम:
- झेलम नदी का उद्गम भारत के जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले में वेरिनाग झरने से होता है।
- लंबाई:
- झेलम नदी की कुल लंबाई लगभग 725 किलोमीटर है।
- प्रवाह का मार्ग:
- यह नदी कश्मीर घाटी से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है, जहाँ यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सिंधु से मिलती है।
- विशेषताएँ:
- झेलम नदी को कश्मीर की “जीवनदायिनी” माना जाता है। इसके किनारे श्रीनगर जैसे प्रमुख शहर स्थित हैं। इसके अलावा, यह पाकिस्तान के मंगला बांध के लिए जल का मुख्य स्रोत है, जिससे जल विद्युत उत्पादन किया जाता है।
2. चिनाब नदी
- उद्गम:
- चिनाब नदी का उद्गम भारत के हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले में चंद्र और भागा नदियों के संगम से होता है।
- लंबाई:
- चिनाब नदी की कुल लंबाई लगभग 960 किलोमीटर है।
- प्रवाह का मार्ग:
- यह नदी जम्मू और कश्मीर से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है और पंजाब में सिंधु नदी में मिल जाती है।
- विशेषताएँ:
- चिनाब नदी पर भारत और पाकिस्तान के बीच जल बंटवारे को लेकर कई समझौते हुए हैं। यह नदी कृषि और जल विद्युत के लिए महत्त्वपूर्ण है। सलाल और बगलीहार जैसे बांध इसी नदी पर बने हुए हैं।
3. रावी नदी
- उद्गम:
- रावी नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में रोहतांग दर्रे के पास होता है।
- लंबाई:
- इसकी कुल लंबाई लगभग 720 किलोमीटर है।
- प्रवाह का मार्ग:
- यह पंजाब से होकर पाकिस्तान में प्रवेश करती है और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में सिंधु नदी में मिल जाती है।
- विशेषताएँ:
- रावी नदी पर भारतीय राज्य पंजाब में रंजीत सागर बांध बनाया गया है। यह पंजाब की कृषि के लिए भी महत्त्वपूर्ण है।
4. ब्यास नदी
- उद्गम:
- ब्यास नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में रोहतांग दर्रे के पास होता है।
- लंबाई:
- ब्यास नदी की लंबाई लगभग 470 किलोमीटर है।
- प्रवाह का मार्ग:
- यह पंजाब से होकर सतलुज नदी में मिलती है।
- विशेषताएँ:
- ब्यास नदी पौराणिक महाभारत के प्रसंगों से जुड़ी हुई मानी जाती है। भारतीय राज्य पंजाब में इसका बड़ा प्रभाव है, जहाँ कृषि के लिए इसका पानी उपयोग होता है।
5. सतलुज नदी
- उद्गम:
- सतलुज नदी का उद्गम तिब्बत के राक्षस ताल झील से होता है।
- लंबाई:
- सतलुज नदी की कुल लंबाई लगभग 1,448 किलोमीटर है, जो कि सिंधु की सबसे लंबी सहायक नदी है।
- प्रवाह का मार्ग:
- यह हिमाचल प्रदेश से होकर पंजाब में प्रवेश करती है और पाकिस्तान में जाकर सिंधु से मिलती है।
- विशेषताएँ:
- सतलुज नदी पर भाखड़ा नांगल बांध बना हुआ है, जो कि भारत का प्रमुख जलाशय और जलविद्युत परियोजना है। यह पंजाब और हरियाणा की सिंचाई प्रणाली में अहम भूमिका निभाता है।
सिंधु नदी तंत्र की अन्य सहायक नदियाँ
सिंधु नदी तंत्र की मुख्य सहायक नदियों के अलावा, कुछ अन्य सहायक नदियाँ भी हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में जल आपूर्ति का स्रोत हैं:
- श्योक नदी:
- श्योक नदी लद्दाख क्षेत्र में उत्पन्न होती है और सिंधु नदी की सहायक नदी है। इसका प्रवाह पाकिस्तान में सिंधु से मिल जाता है। इसे “स्ट्रेंज रिवर” (अजीब नदी) भी कहा जाता है क्योंकि इसका प्रवाह उल्टा होता है।
- घागर-हकरा नदी:
- यह नदी कभी सिंधु की प्रमुख सहायक नदी थी और इसे प्राचीन सभ्यताओं का केंद्र माना जाता था। वर्तमान में यह अधिकांशतः सूखी है और इसे “मृत नदी” के नाम से भी जाना जाता है।
- झेलम-चिनाब नदी प्रणाली:
- झेलम और चिनाब नदियों के संगम से बनने वाली प्रणाली पाकिस्तान के विभिन्न हिस्सों में सिंधु से मिलती है और वहां के कृषि क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है।
- काबुल नदी:
- काबुल नदी का उद्गम अफगानिस्तान में होता है और यह पाकिस्तान में सिंधु से मिलती है। इस नदी का ऐतिहासिक और भौगोलिक महत्त्व है, और इसके किनारे बसे इलाके कृषि में आत्मनिर्भर हैं।
सिंधु नदी तंत्र का आर्थिक और सामाजिक महत्त्व
- कृषि:
- सिंधु नदी पाकिस्तान की जीवनरेखा मानी जाती है। इसका पानी पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत की सिंचाई प्रणाली में अहम भूमिका निभाता है। यहाँ की उपजाऊ भूमि सिंधु के जल पर निर्भर करती है।
- जलविद्युत उत्पादन:
- सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों पर कई जलविद्युत परियोजनाएँ हैं। भाखड़ा नांगल बांध, मंगला बांध और तरबेला बांध जैसे कई बांधों ने बिजली उत्पादन में योगदान दिया है।
- पर्यावरण:
- सिंधु नदी तंत्र में कई पारिस्थितिक तंत्र पाए जाते हैं। यहाँ पर पक्षियों, मछलियों और जलजीवों की अनेक प्रजातियाँ निवास करती हैं। सिंधु डॉल्फिन, जो एक दुर्लभ प्रजाति है, सिंधु नदी में पाई जाती है।
- सांस्कृतिक महत्त्व:
- सिंधु नदी भारतीय और पाकिस्तानी सभ्यता के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व से जुड़ी हुई है। इस नदी के किनारे पर हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे प्राचीन स्थल स्थित हैं, जो प्राचीन सभ्यता के महत्वपूर्ण केंद्र थे।
- जलवायु प्रभाव:
- सिंधु का प्रवाह हिमालय के ग्लेशियरों पर निर्भर करता है। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का पिघलना और बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, जिससे इस क्षेत्र की कृषि और पेयजल पर गंभीर असर पड़ सकता है।
निष्कर्ष
सिंधु नदी तंत्र का महत्त्व उसके जल, जैव विविधता, सांस्कृतिक धरोहर, कृषि और उद्योगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह तंत्र दक्षिण एशिया के एक बड़े हिस्से के लिए महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करता है और सिंधु घाटी सभ्यता की ऐतिहासिक धरोहर को भी संजोता है।