परिचय:
कृषि में घटती उत्पादकता: कृषि में घटती उत्पादकता एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है, जहां समय के साथ प्रति यूनिट इनपुट फसलों का उत्पादन कम हो जाता है, जो अक्सर मिट्टी की गिरावट,पानी की कमी,जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न कारकों के कारण होता है।
कृषि में घटती उत्पादकता का आधार :
- कृषि में घटती उत्पादकता का आधार उन प्रमुख कारकों पर केंद्रित है जो कृषि उत्पादन को प्रभावित करते हैं। ये कारक प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक और प्रबंधन से संबंधित होते हैं। इनकी विस्तृत समझ से यह पता चलता है कि कृषि क्षेत्र की उत्पादकता क्यों घट रही है और इसे कैसे सुधारा जा सकता है। इसके आधार के कुछ मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं:
- 1. प्राकृतिक आधार:
- मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट: मृदा की उर्वरता में कमी, अपरदन, बंजरता और पोषक तत्वों की कमी कृषि उत्पादकता में गिरावट का एक मुख्य कारण है।
- जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान, अनियमित वर्षा, बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने कृषि उत्पादन को प्रभावित किया है।
- जल संसाधनों की कमी: सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की अनुपलब्धता और भूजल स्तर का अत्यधिक दोहन किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है।
- उदाहरण: वर्ष 2021 में मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में सूखा पड़ने से फसल की पैदावार में गिरावट आई थी।
- 2. आर्थिक आधार:
- उन्नत कृषि उपकरणों और संसाधनों की कमी: छोटे और सीमांत किसानों के पास उन्नत कृषि यंत्र और तकनीक खरीदने की आर्थिक क्षमता नहीं होती, जिससे उत्पादकता कम होती है।
- विपणन और मूल्य निर्धारण समस्याएं: किसानों को अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलने से उनकी आय में गिरावट होती है, जिससे वे खेती में पर्याप्त निवेश नहीं कर पाते हैं।
- कृषि में सरकारी निवेश की कमी: कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए सीमित सरकारी निवेश कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में बाधा उत्पन्न करता है।
- उदाहरण: भारत में कृषि अनुसंधान और विकास में जीडीपी का केवल 0.3% निवेश किया जाता है, जो कृषि उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
- 3. सामाजिक आधार:
- कृषि में जनसंख्या का दबाव: भारत की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण खेती योग्य भूमि का आकार घट रहा है, जिससे प्रति इकाई भूमि पर उत्पादन की क्षमता कम हो जाती है।
- शिक्षा और जागरूकता का अभाव: ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संबंधी आधुनिक तकनीकों की जानकारी का अभाव भी उत्पादकता को प्रभावित करता है। किसानों को नई तकनीक और उन्नत कृषि विधियों की सही जानकारी नहीं होती।
- छोटे और सीमांत किसान: भारत में 86% किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जिनके पास सीमित भूमि और संसाधन होते हैं, जिससे वे उत्पादन बढ़ाने में असमर्थ होते हैं।
- उदाहरण: बिहार और उत्तर प्रदेश में छोटे किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज और उपकरण खरीदने में कठिनाई होती है, जिससे उनकी कृषि उत्पादकता प्रभावित होती है।
- 4. तकनीकी आधार:
- परंपरागत कृषि विधियों का प्रयोग: कई किसान अब भी पुरानी और पारंपरिक खेती की विधियों का प्रयोग करते हैं, जो आधुनिक तकनीकों की तुलना में कम उत्पादक होती हैं।
- उन्नत बीज और तकनीकों की कमी: कृषि अनुसंधान और तकनीकी विकास की कमी के कारण किसान उच्च उपज वाले बीज और नवीनतम कृषि उपकरणों का प्रयोग नहीं कर पाते।
- उर्वरकों और कीटनाशकों का असंतुलित प्रयोग: अधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का असंतुलित उपयोग मृदा की उर्वरता को प्रभावित करता है और कृषि उत्पादकता में गिरावट लाता है।
- उदाहरण: हरियाणा और पंजाब में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उत्पादकता कम हो गई है।
- 5. संरचनात्मक और नीतिगत आधार:
- कृषि में संस्थागत समर्थन की कमी: कृषि सुधारों और नीतियों का कार्यान्वयन धीमा होने से किसानों को उचित समर्थन नहीं मिल पाता। जैसे कि, किसानों को समय पर ऋण या सब्सिडी न मिलना।
- उपयुक्त भंडारण और परिवहन सुविधाओं की कमी: उपज को लंबे समय तक सुरक्षित रखने और बाजार तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त भंडारण और परिवहन सुविधाओं की कमी भी उत्पादकता घटने का कारण है।
- भूमि सुधारों का अभाव: भूमि सुधारों के अभाव में किसान छोटे भूखंडों पर खेती कर रहे हैं, जिससे उनकी उत्पादकता सीमित हो जाती है।
- उदाहरण: भारत में कृषि उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी के कारण हर साल बड़ी मात्रा में अनाज बर्बाद हो जाता है।
- कृषि में घटती उत्पादकता का आधार प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी और संरचनात्मक कारकों पर निर्भर करता है। इन कारकों को ध्यान में रखकर कृषि में सुधार की दिशा में उचित कदम उठाने की आवश्यकता है, जिससे कृषि में घटती उत्पादकता में वृद्धि की जा सके और किसानों की आय को स्थिर किया जा सके।
कृषि में घटती उत्पादकता के कारण :
कृषि में घटती उत्पादकता के निम्न कारण है –
संस्थागत कारक:
- जनसंखियकीय कारण
- औसत जोत का घटता आकर
- सीमांत किसानों की अधिकता
- सामाजिक पर्यावरण
- मानसून पर निर्भरता
- मृदा की उर्वरता में कमी
संस्थागत कारक:
- भूमि काश्तकार प्रणाली
- अपर्याप्त विपणन
- अपर्याप्त ऋण सुविधाएं
- नौकरशाहो में उदासीनता का भाव
- कृषि सब्सिडी का कम होना
तकनीकी कारक:
- खेती के पारंपरिक तरीके
- उच्च उपज वाले बीजों की कमी
- उर्वरक का असंतुलित प्रयोग
- सिंचाई सुविधा का अभाव
- कीटनाशकों की कमी
- कृषि अनुसंधान का अभाव
कृषि में घटती उत्पादकता बढ़ाने के लिए सरकारी प्रयास
कृषि में घटती उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सरकारी प्रयास निम्न है –
1. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
सिंचाई की सुविधा की कमी से किसानों की उत्पादकता प्रभावित होती है। इस समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने 2015 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुआत की। इसका उद्देश्य किसानों को ‘हर खेत को पानी’ उपलब्ध कराना और जल प्रबंधन को बेहतर बनाना है। योजना के तहत मुख्यत:
- सिंचाई के लिए छोटे-छोटे जल स्रोतों का विकास।
- वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देना।
- माइक्रो इरिगेशन (ड्रिप और स्प्रिंकलर) को प्रोत्साहित करना ताकि पानी का समुचित उपयोग हो सके।
यह योजना कृषि भूमि पर जल आपूर्ति की समस्या को दूर कर खेती में उत्पादकता बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुई है।
2. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)
कृषि में वित्तीय संकट से निपटने के लिए सरकार ने 2019 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत सभी योग्य किसानों को प्रति वर्ष 6,000 रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसका उद्देश्य किसानों की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ करना और कृषि में निवेश को बढ़ावा देना है, जिससे उत्पादकता में सुधार हो सके।
3. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (Soil Health Card Scheme)
मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाए बिना कृषि उत्पादकता में सुधार संभव नहीं है। इस दिशा में सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की। योजना के तहत किसानों को उनकी भूमि की मिट्टी की गुणवत्ता के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है, जिसमें मिट्टी के पोषक तत्वों की कमी का विश्लेषण शामिल होता है।
इस कार्ड की मदद से किसान यह जान पाते हैं कि उनकी भूमि को कौन-से पोषक तत्वों की आवश्यकता है और वे सही मात्रा में उर्वरक और जैविक खाद का उपयोग कर सकते हैं। इससे मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है और उत्पादकता में वृद्धि होती है।
4. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
कृषि एक जोखिमपूर्ण व्यवसाय है, जहां प्राकृतिक आपदाओं और मौसम की अनिश्चितताओं से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। कृषि में घटती उत्पादकता के एक बड़े कारण के रूप में यह जोखिम उभरकर आता है। इसे देखते हुए, 2016 में सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की।
इस योजना के अंतर्गत, किसानों की फसलों को प्राकृतिक आपदाओं, सूखा, बाढ़, कीटों और बीमारियों से हुए नुकसान के खिलाफ बीमा प्रदान किया जाता है। इसका उद्देश्य किसानों को नुकसान से बचाना और उनकी आर्थिक स्थिति को स्थिर रखना है ताकि वे कृषि उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर सकें और उत्पादकता को बढ़ा सकें।
5. कृषि यंत्रीकरण (Farm Mechanization)
कृषि में श्रम आधारित तरीकों के बजाय यंत्रीकरण को बढ़ावा देना उत्पादकता में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण उपाय है। इसलिए सरकार ने कृषि यंत्रीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। इसके तहत किसानों को आधुनिक कृषि उपकरण जैसे ट्रैक्टर, थ्रेशर, पंप सेट आदि पर सब्सिडी दी जाती है।
कृषि यंत्रीकरण कोष (Farm Mechanization Fund) और कस्टम हायरिंग सेंटर जैसी योजनाओं के माध्यम से, छोटे और मध्यम किसानों को उन्नत कृषि उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं। इससे खेती की प्रक्रियाओं को सरल बनाया जा रहा है और कृषि उत्पादन बढ़ रहा है।
6. राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (Rashtriya Krishi Vikas Yojana – RKVY)
कृषि उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार ने 2007 में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना शुरू की थी, जो आज भी प्रभावी है। इस योजना के तहत राज्य सरकारों को उनके कृषि उत्पादन में सुधार के लिए वित्तीय सहायता दी जाती है। इसके माध्यम से राज्य सरकारें कृषि की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम लागू कर सकती हैं। इस योजना ने विशेषकर बागवानी, पशुपालन और मछलीपालन जैसे क्षेत्रों में सुधार करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
7. किसानों के लिए डिजिटल और तकनीकी समाधान
तकनीकी विकास के इस युग में, सरकार ने डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग करके किसानों को सशक्त बनाने के कई उपाय किए हैं:
- कृषि ऐप्स और पोर्टल्स जैसे e-NAM (National Agriculture Market) के माध्यम से किसान अपने उत्पादों को बेहतर कीमतों पर बेच सकते हैं।
- किसान कॉल सेंटर और किसान SMS सेवा के माध्यम से किसानों को कृषि सलाह और मौसम संबंधी जानकारी दी जाती है।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके किसानों को उन्नत खेती के तरीके सिखाए जाते हैं।
8. फसल विविधिकरण (Crop Diversification)
सिर्फ पारंपरिक फसलों पर निर्भर रहने के बजाय, विविधीकृत खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। सरकार किसानों को नई फसलों, जैसे तिलहन, दलहन, फल और सब्जियों की खेती करने के लिए प्रेरित कर रही है। इससे न केवल किसानों की आय में वृद्धि होती है, बल्कि कृषि उत्पादकता भी बढ़ती है, क्योंकि फसल विविधिकरण से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और जैविक संतुलन कायम रहता है।
9. कृषि शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रम
सरकार ने कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) और कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से किसानों को कृषि तकनीकों पर प्रशिक्षण देने की पहल की है। इन केंद्रों के माध्यम से किसानों को नवीनतम कृषि पद्धतियों, उर्वरक प्रबंधन, कीट नियंत्रण और आधुनिक सिंचाई तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाती है। इससे किसानों की कृषि ज्ञान में वृद्धि होती है और वे अपनी भूमि पर अधिक उत्पादन कर पाते हैं।
कृषि में घटती उत्पादकता बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव:
- जल प्रबंधन को बेहतर बनाएं:
- आधुनिक सिंचाई तकनीकों (ड्रिप और स्प्रिंकलर) का उपयोग करें, जिससे पानी का सही और संतुलित उपयोग हो सके।
- वर्षा जल संचयन और वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा दें।
- मृदा स्वास्थ्य पर ध्यान दें:
- मृदा परीक्षण कराकर ही उर्वरक और पोषक तत्वों का प्रयोग करें।
- जैविक खाद और प्राकृतिक उर्वरकों का अधिक से अधिक उपयोग करें, जिससे मृदा की गुणवत्ता में सुधार हो सके।
- उन्नत बीज और प्रजातियों का चयन:
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकसित की गई उन्नत बीज प्रजातियों का उपयोग करें, जो उच्च उत्पादकता, सूखा और रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली होती हैं।
- क्षेत्र विशेष की जलवायु और मिट्टी के अनुसार उपयुक्त फसलें चुनें।
- फसल विविधिकरण (Crop Diversification):
- सिर्फ एक ही प्रकार की फसल पर निर्भर न रहें, बल्कि तिलहन, दलहन, फल और सब्जियों की खेती भी करें।
- बहुफसली कृषि (Intercropping) को अपनाएं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और जोखिम कम हो।
- तकनीकी शिक्षा और जागरूकता:
- कृषि विज्ञान केंद्रों और सरकारी प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लें, जिससे नई और उन्नत खेती की तकनीकों को सीख सकें।
- e-NAM, कृषि ऐप्स और डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग करें, जिससे फसल बिक्री में पारदर्शिता और सही मूल्य मिल सके।
- कृषि यंत्रीकरण को बढ़ावा दें:
- खेती में आधुनिक मशीनरी और उपकरणों का उपयोग करें, जिससे श्रम और समय की बचत हो सके और उत्पादकता बढ़े।
- कस्टम हायरिंग सेंटर का लाभ उठाकर छोटे किसान भी मशीनरी का उपयोग कर सकते हैं।
- सतत कृषि पद्धतियों को अपनाएं:
- जैविक खेती और प्राकृतिक खेती जैसे स्थायी और पर्यावरण अनुकूल तरीकों को अपनाएं, जो लंबे समय तक मृदा स्वास्थ्य और उत्पादकता बनाए रखने में मदद करेंगे।
- जलवायु परिवर्तन के लिए तैयारी:
- मौसम की अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए कृषि कार्य करें। विभिन्न फसलों के लिए समयबद्ध और उपयुक्त कदम उठाएं।
- स्थानीय मौसम पूर्वानुमान और सरकारी मौसम सूचना सेवाओं का उपयोग करें।
- फसल बीमा योजना का लाभ उठाएं:
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजनाओं से जुड़े रहें, ताकि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके।
- कृषि सहकारी समितियों में भागीदारी:
- स्थानीय कृषि सहकारी समितियों से जुड़ें, जिससे सस्ती दरों पर बीज, उर्वरक और कृषि उपकरण मिल सकें और उत्पादों को बेहतर मूल्य पर बेचा जा सके।
इन सुझावों का पालन कर, किसान न केवल अपनी कृषि में घटती उत्पादकता बढ़ा सकते हैं, बल्कि कृषि से होने वाले जोखिमों को भी कम कर सकते हैं। इसके अलावा, टिकाऊ खेती और आधुनिक तकनीकों का उपयोग लंबी अवधि में अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।