भारतीय चट्टानों का वर्गीकरण

भारत एक भौगोलिक दृष्टि से विविधता से भरा देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार की चट्टानें पाई जाती हैं। ये न केवल भूगर्भीय इतिहास को दर्शाती हैं, बल्कि भूगर्भीय प्रक्रियाओं, जलवायु, और जीवों के विकास को भी प्रभावित करती हैं। भारत के चट्टान समूहों को तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: आधार चट्टानें (Igneous Rocks), स्नातक चट्टानें (Sedimentary Rocks), और मेटामॉर्फिक चट्टानें (Metamorphic Rocks)।

इस लेख में, हम प्रत्येक चट्टान समूह की विशेषताओं, वर्गीकरण, और उदाहरणों के साथ विस्तृत अध्ययन करेंगे।

1. आधार चट्टानें (Igneous Rocks)

परिभाषा: आधार चट्टानें वे चट्टानें हैं जो ठोस magma या लावा के ठंडा होने से बनती हैं। ये चट्टान उनकी उत्पत्ति के स्थान के आधार पर दो श्रेणियों में विभाजित की जाती हैं: आंतरिक (Intrusive) और बाह्य (Extrusive)।

आंतरिक चट्टान (Intrusive Rocks)

विशेषताएँ:

  • इन चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक भाग में होता है, जहाँ magma धीरे-धीरे ठंडा होता है।
  • इनमें बड़े क्रिस्टल पाए जाते हैं, क्योंकि ठंडा होने की प्रक्रिया धीमी होती है।

उदाहरण:

  • ग्रेनाइट (Granite): यह एक हल्की और कठोर चट्टान है, जो मुख्यतः क्वार्ट्ज़, फेल्डस्पार, और मिका से बनी होती है। इसका उपयोग भवन निर्माण, सजावट, और अन्य औद्योगिक उपयोगों में होता है।
  • गाब्रो (Gabbro): यह एक गहरे रंग की चट्टान है, जो भीतरी भाग में पाई जाती है। यह बेसाल्ट का आंतरिक समकक्ष है और निर्माण में उपयोग की जाती है।

बाह्य चट्टान (Extrusive Rocks)

विशेषताएँ:

  • बाह्य चट्टान तब बनती हैं जब लावा पृथ्वी की सतह पर बहता है और ठंडा होता है।
  • इन चट्टानों में छोटे या बिना क्रिस्टल होते हैं, क्योंकि ठंडा होना तेज होता है।

उदाहरण:

  • बेसाल्ट (Basalt): यह एक गहरी और काली चट्टान है, जो समुद्री तल के निर्माण में पाई जाती है। यह पृथ्वी पर सबसे सामान्य चट्टान है और इसका उपयोग सड़कों और भवनों में किया जाता है।
  • रियोलाइट (Rhyolite): यह एक हल्की और हल्के रंग की चट्टान है, जो अधिक विस्फोटक ज्वालामुखी गतिविधियों के परिणामस्वरूप बनती है।

2. स्नातक चट्टान (Sedimentary Rocks)

परिभाषा: स्नातक चट्टान विभिन्न प्रकार के तलछटों के संकुचन और सीमेंटिंग के माध्यम से बनती हैं। ये चट्टानें मुख्यतः तीन श्रेणियों में वर्गीकृत की जाती हैं: तलछटी (Clastic), रासायनिक (Chemical), और जैविक (Biogenic)।

तलछटी चट्टान (Clastic Rocks)

विशेषताएँ:

  • ये चट्टानें अन्य चट्टानों के टूटने से बने कणों के संकुचन से बनती हैं।
  • इनमें विभिन्न आकार और बनावट के कण होते हैं।

उदाहरण:

  • सैंडस्टोन (Sandstone): यह एक प्रमुख तलछटी चट्टान है, जो मुख्यतः क्वार्ट्ज़ कणों से बनी होती है। इसका उपयोग निर्माण कार्य में और सजावट में किया जाता है।
  • शेल (Shale): यह एक महीन कण वाली चट्टान है, जो मुख्यतः मिट्टी के कणों से बनी होती है। इसका उपयोग औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जाता है।

रासायनिक चट्टान (Chemical Rocks)

विशेषताएँ:

  • ये चट्टान रासायनिक प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनती हैं।
  • इनका निर्माण जल में घुलने वाले खनिजों के अवक्षय से होता है।

उदाहरण:

  • चूना पत्थर (Limestone): यह कैल्शियम कार्बोनेट से बनी होती है और इसे चूना उत्पादन में उपयोग किया जाता है। चूना पत्थर का उपयोग निर्माण, कागज, और कांच के उत्पादन में भी होता है।
  • सल्ट (Salt): यह मुख्यतः सोडियम क्लोराइड से बनी होती है और इसे खाद्य और औद्योगिक उपयोग में लाया जाता है।

जैविक चट्टान (Biogenic Rocks)

विशेषताएँ:

  • ये चट्टानें जीवों के अवशेषों के जमा होने से बनती हैं।
  • इनमें जीवाश्मों का समावेश होता है।

उदाहरण:

  • कोयला (Coal): यह जीवाश्म ईंधन है, जो प्लांट अवशेषों के संकुचन से बनता है। इसका उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है।
  • रेडियोलाइट (Rudstone): यह जीवों के अवशेषों के संकुचन से बनती है, जैसे कि शंख और कोरल।

3. मेटामॉर्फिक चट्टान (Metamorphic Rocks)

परिभाषा: मेटामॉर्फिक चट्टानें वे चट्टानें हैं जो पहले से विद्यमान आधार या स्नातक चट्टानों में उच्च तापमान और दबाव के प्रभाव से बदल जाती हैं। इस प्रक्रिया को मेटामॉरफिज्म (Metamorphism) कहा जाता है।

विशेषताएँ

  • इन चट्टानों में क्रिस्टल स्पष्ट होते हैं।
  • इनमें नई खनिज संरचनाएँ विकसित होती हैं।

उदाहरण

  • ग्नेसिस (Gneiss): इसमें विभिन्न रंगों की धारियाँ होती हैं और यह निर्माण में उपयोग होती है। इसे आमतौर पर अधिक दृढ़ता के लिए उपयोग किया जाता है।
  • मार्बल (Marble): यह चूना पत्थर का मेटामॉर्फिक रूप है और इसका उपयोग मूर्तिकला और सजावट में किया जाता है। यह सफेद, हरा, और अन्य रंगों में उपलब्ध होता है।

भारत में चट्टानों का वितरण

भारत के भूगर्भीय इतिहास में चट्टानों का वितरण महत्वपूर्ण है। यह देश के विभिन्न भागों में चट्टानों की विशेषताओं को समझने में मदद करता है।

आर्कियन चट्टान

भारत में सबसे पुरानी चट्टानें आर्कियन युग की हैं, जो लगभग 4 अरब वर्ष पुरानी मानी जाती हैं। ये मुख्यतः दक्कन पठार, छत्तीसगढ़, और झारखंड में पाई जाती हैं।

  • उदाहरण:
    • क्लेराइट (Cliffite): यह गहरे रंग की चट्टान है, जो मुख्यतः मिट्टी के पदार्थों से बनी होती है।
    • स्टीटाइट (Steatite): यह मैग्नेशियम-सिलिकेट चट्टान है, जिसका उपयोग टाइल्स और निर्माण सामग्री में होता है।

प्रोटेरोज़ोइक चट्टान

यह युग लगभग 2.5 अरब वर्ष पहले से शुरू होता है। इनमें कई प्रकार की आधार चट्टानें और स्नातक चट्टानें शामिल हैं।

  • उदाहरण:
    • ग्नेसिस: दक्कन क्षेत्र में पाई जाती है और इसकी परतों में विविधता होती है।
    • लाइमस्टोन: इसका उपयोग निर्माण कार्य में किया जाता है और यह कई क्षेत्रों में उपलब्ध है।

पेलियोज़ोइक चट्टान

यह युग लगभग 540 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुआ। इस युग में समुद्र में जीवों की अधिकता हुई, जिससे जैविक चट्टानों का निर्माण हुआ।

  • उदाहरण:
    • कोयला: झारखंड, छत्तीसगढ़, और पश्चिम बंगाल में कोयले की खदानें पाई जाती हैं। यह जीवाश्म ईंधन ऊर्जा उत्पादन में महत्वपूर्ण है।
    • सैंडस्टोन: यह मुख्यतः राजस्थान और मध्य प्रदेश में पाया जाता है।

मेसोज़ोइक चट्टान

इस युग में लगभग 250 मिलियन वर्ष पहले से 66 मिलियन वर्ष पहले तक का समय शामिल है। इस दौरान कई महाद्वीपों का निर्माण हुआ।

  • उदाहरण:
    • चूना पत्थर: हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है और इसका उपयोग निर्माण में होता है।

सीनोज़ोइक चट्टान

यह युग लगभग 66 मिलियन वर्ष पहले से वर्तमान तक का है। इस युग में आधुनिक जीवों का विकास हुआ ।

उदाहरण :

  • बेसाल्ट: दक्कन ट्रैप क्षेत्र में पाया जाता है और यह एक महत्वपूर्ण आधार चट्टान है। यह ज्वालामुखी गतिविधियों का परिणाम है और इसकी मोटी परतें भारत के दक्षिणी हिस्से में फैली हुई हैं। इसका उपयोग निर्माण और सड़कों के निर्माण में होता है।
  • सैंडस्टोन और शेल: ये चट्टानें मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में पाई जाती हैं। इनका उपयोग निर्माण कार्य में होता है और ये जलाशयों का निर्माण भी करती हैं।

भारत में चट्टानों के भौगोलिक वितरण

भारत में चट्टानों का वितरण उनके निर्माण के आधार पर अलग-अलग क्षेत्रों में फैला हुआ है। यहाँ हम कुछ प्रमुख क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे जहाँ विभिन्न चट्टानें पाई जाती हैं:

  1. उत्तर भारत:
    • हिमालय क्षेत्र: यहाँ मेटामॉर्फिक चट्टानें जैसे ग्नेसिस और शेल पाई जाती हैं। ये चट्टानें भूगर्भीय गतिविधियों का परिणाम हैं।
    • गंगा के मैदान: इस क्षेत्र में मुख्यतः स्नातक चट्टानें जैसे सैंडस्टोन और शेल पाई जाती हैं।
  2. दक्षिण भारत:
    • दक्कन पठार: यहाँ पर मुख्यतः बेसाल्ट चट्टानें पाई जाती हैं। दक्कन ट्रैप में ज्वालामुखी गतिविधियों के कारण यह चट्टानें बनी हैं।
    • कर्नाटक: यहाँ ग्रेनाइट और गनीस जैसी आधार चट्टानें प्रमुख हैं।
  3. पश्चिम भारत:
    • राजस्थान: इस क्षेत्र में सैंडस्टोन और चूना पत्थर की चट्टानें प्रमुख हैं, जो निर्माण कार्य में महत्वपूर्ण हैं।
    • गुजरात: यहाँ बेसाल्ट और चूना पत्थर पाई जाती हैं।
  4. पूर्व भारत:
    • झारखंड: यहाँ कोयले और अन्य जैविक चट्टानें जैसे कि सल्ट और शेल पाई जाती हैं।
    • ओडिशा: इस क्षेत्र में स्नातक चट्टानें और मेटामॉर्फिक चट्टानें पाई जाती हैं।
  5. उत्तर-पूर्व भारत:
    • यहाँ की चट्टानें मुख्यतः मेटामॉर्फिक चट्टानें हैं, जैसे कि शेल और ग्नेसिस। यह क्षेत्र भूगर्भीय दृष्टि से जटिल है।

चट्टानों की विशेषताएँ और आर्थिक महत्व

भारत की चट्टानें न केवल भूगर्भीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी इनका महत्वपूर्ण योगदान है। आइए इनकी विशेषताओं और आर्थिक महत्व का अध्ययन करें:

1. आधार चट्टानें

विशेषताएँ:

  • ये चट्टानें आमतौर पर घनी और मजबूत होती हैं।
  • इनमें खनिजों का समृद्ध भंडार होता है।

आर्थिक महत्व:

  • खनिज उत्पादन: आधार चट्टानें विभिन्न धातुओं जैसे कि तांबा, सोना, और लोहा का स्रोत होती हैं। इनका खनन और उत्पादन उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है।
  • निर्माण कार्य: ग्रेनाइट और गाब्रो जैसी चट्टानें निर्माण उद्योग में बहुत उपयोगी होती हैं।

2. स्नातक चट्टानें

विशेषताएँ:

  • ये चट्टानें हल्की होती हैं और इनका निर्माण तलछटों के जमा होने से होता है।
  • इनमें जीवाश्मों का समावेश हो सकता है।

आर्थिक महत्व:

  • ऊर्जा स्रोत: कोयला जैसे जीवाश्म ईंधनों का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। झारखंड, छत्तीसगढ़, और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कोयले की खदानें हैं।
  • निर्माण सामग्री: चूना पत्थर और सैंडस्टोन का उपयोग निर्माण और सजावट में किया जाता है।

3. मेटामॉर्फिक चट्टानें

विशेषताएँ:

  • ये चट्टानें उच्च तापमान और दबाव के कारण बनी होती हैं और इनमें क्रिस्टल स्पष्ट होते हैं।
  • इनके निर्माण में कई खनिज शामिल हो सकते हैं।

आर्थिक महत्व:

  • सजावट और मूर्तिकला: मार्बल का उपयोग सजावटी वस्तुओं और मूर्तियों के निर्माण में किया जाता है।
  • निर्माण उद्योग: ग्नेसिस और अन्य मेटामॉर्फिक चट्टानें भवन निर्माण में महत्वपूर्ण होती हैं।

चट्टानों का पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव

चट्टानें न केवल भूगर्भीय दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र पर भी इनका गहरा प्रभाव होता है:

  1. जल संसाधनों का संरक्षण: चट्टानें जलाशयों के निर्माण में मदद करती हैं। स्नातक चट्टानें जल का संचयन करती हैं, जिससे भूमिगत जलस्तर में वृद्धि होती है।
  2. मिट्टी की संरचना: चट्टानों का अपक्षय मिट्टी की गुणवत्ता और संरचना को प्रभावित करता है। यह कृषि के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उर्वरक मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
  3. जीवों के लिए आवास: चट्टानें कई जीवों के लिए आवास प्रदान करती हैं। ये चट्टानें जंगली जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र में विविधता का योगदान देती हैं।
  4. जलवायु परिवर्तन के संकेत: चट्टानों का अध्ययन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने में मदद करता है। भूगर्भीय प्रक्रियाएँ और चट्टानों का गठन जलवायु परिवर्तन के संकेत दे सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत के चट्टान समूह न केवल भूगर्भीय संरचना को दर्शाते हैं, बल्कि ये देश के प्राकृतिक संसाधनों, ऊर्जा उत्पादन, और निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चट्टानों का अध्ययन न केवल भूविज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में भी सहायक है।

इन चट्टानों की विशेषताएँ, वर्गीकरण, और उनके आर्थिक महत्व को समझना हमारे लिए आवश्यक है, ताकि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग कर सकें और पर्यावरण को संतुलित रख सकें। भारत की भौगोलिक विविधता में चट्टानों का अध्ययन और संरक्षण न केवल हमारे वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ाएगा, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्थायी और सुरक्षित पर्यावरण सुनिश्चित करेगा।

भारत का भू-आकृतिक विभाजन: विस्तृत अध्ययन

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