परिचय: भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषता– भारतीय अर्थव्यवस्था क्रय शक्ति क्षमता के आधार पर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और बाज़ार विनिमय दर के आधार पर 5वी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है
1. मिश्रित अर्थव्यवस्था
मिश्रित अर्थव्यवस्था वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें सार्वजनिक (सरकारी) और निजी (निजी संस्थान) दोनों क्षेत्रों की भागीदारी होती है। यह प्रणाली पूंजीवाद और समाजवाद के तत्वों का संयोजन करती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था में सरकार और निजी क्षेत्र दोनों मिलकर आर्थिक गतिविधियों को संचालित करते हैं।
लाभ:
- आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण का संतुलन।
- बाजार की प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा।
- गरीब और कमजोर वर्गों के लिए सरकारी योजनाएँ और सुरक्षा।
सीमाएँ:
- सरकारी नियंत्रण के कारण कभी-कभी धीमी निर्णय प्रक्रिया।
- निजी क्षेत्र में मुनाफे के प्रति अति-ध्यान, जिससे सामाजिक कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव।
- कभी-कभी भ्रष्टाचार और नौकरशाही की समस्याएँ।
मिश्रित अर्थव्यवस्था का उद्देश्य देश में एक संतुलित और न्यायसंगत विकास सुनिश्चित करना है, जहाँ निजी क्षेत्र की क्षमता और सरकारी हस्तक्षेप दोनों का उचित उपयोग किया जाता है।
2.कृषि आधारित अर्थव्यवस्था (Agriculture-Based Economy)
भारत की अर्थव्यवस्था ऐतिहासिक रूप से कृषि पर निर्भर रही है। कृषि क्षेत्र में देश की करीब 50% से अधिक जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त करती है। देश की जीडीपी में कृषि का योगदान धीरे-धीरे घट रहा है, फिर भी यह महत्वपूर्ण बना हुआ है।
- प्रमुख फसलें: गेहूँ, चावल, गन्ना, कपास, दालें।
- हरित क्रांति और हाल ही में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जैसी सरकारी योजनाएँ कृषि उत्पादन में वृद्धि का आधार बनी हैं।
3. सेवा क्षेत्र का वर्चस्व (Dominance of Service Sector)
भारत के आर्थिक विकास में सेवा क्षेत्र (Service Sector) की अहम भूमिका है। 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद, सेवा क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हुई और यह जीडीपी में सबसे अधिक योगदान देने वाला क्षेत्र बन गया है।
- प्रमुख क्षेत्र: सूचना प्रौद्योगिकी (IT), दूरसंचार, बैंकिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन, और खुदरा व्यापार।
- IT और BPO (Business Process Outsourcing) में भारत की स्थिति वैश्विक स्तर पर अग्रणी है। बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर IT हब के रूप में विकसित हुए हैं।
4. औद्योगिक विकास (Industrial Development)
स्वतंत्रता के बाद से भारत ने अपनी औद्योगिक क्षमता को बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। विशेष रूप से, भारत की पांच वर्षीय योजनाओं में भारी उद्योग, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- मुख्य उद्योग: इस्पात, ऑटोमोबाइल, रसायन, कपड़ा, फार्मास्युटिकल्स।
- भारत अब औद्योगिक उत्पादन और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाला देश है। इसके अलावा, “मेक इन इंडिया” अभियान ने औद्योगिक विकास को और तेज किया है।
5. उपभोक्ता मांग में वृद्धि (Growing Consumer Demand)
भारत एक तेजी से बढ़ता उपभोक्ता बाजार है। देश की विशाल जनसंख्या, मध्यम वर्ग का विस्तार, और क्रय शक्ति में वृद्धि के कारण उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है।
- शहरीकरण और डिजिटलीकरण ने उपभोक्ता बाजार को बढ़ावा दिया है, जिससे विशेष रूप से ई-कॉमर्स और खुदरा व्यापार में भारी विकास हुआ है।
- Flipkart, Amazon, और Reliance Retail जैसे बड़े ब्रांड इस क्षेत्र में अग्रणी हैं।
6. नवाचार और स्टार्टअप्स (Innovation and Startups)
भारत एक वैश्विक स्टार्टअप हब बनता जा रहा है। देश की युवा जनसंख्या, उद्यमशीलता की भावना, और सरकार द्वारा नवाचार को प्रोत्साहन देने वाली नीतियों के कारण भारतीय स्टार्टअप्स की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है।
- भारत में फिनटेक, एडटेक, और हेल्थटेक जैसे क्षेत्रों में कई स्टार्टअप्स उभर रहे हैं।
- सरकार का Startup India और Digital India अभियान ने नए उद्यमों को सहयोग प्रदान किया है।
7. विदेशी व्यापार (Foreign Trade)
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार का महत्वपूर्ण स्थान है। भारत दुनिया के अन्य देशों के साथ वस्तुओं और सेवाओं का व्यापार करता है। भारत का प्रमुख निर्यात कृषि उत्पाद, कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, रसायन, और आभूषण है।
- भारत की प्रमुख निर्यात सामग्री: पेट्रोलियम उत्पाद, हीरे, दवाइयाँ, मशीनरी।
- प्रमुख आयात सामग्री: कच्चा तेल, मशीनरी, रसायन, सोना, इलेक्ट्रॉनिक्स।
- भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार: संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोप।
8. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment – FDI)
भारत की FDI नीतियाँ आर्थिक सुधारों के बाद से काफी उदार हो चुकी हैं। सरकार ने विदेशी निवेशकों के लिए कई सेक्टरों में निवेश के दरवाजे खोले हैं। इससे देश में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा मिला है।
- FDI का प्रमुख क्षेत्र: ऑटोमोबाइल, दूरसंचार, विनिर्माण, खुदरा व्यापार।
- भारत वैश्विक निवेशकों के लिए एक आकर्षक स्थान बना हुआ है, विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, और रीटेल क्षेत्रों में।
9. बेरोजगारी और गरीबी (Unemployment and Poverty)
भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख चुनौतियों में बेरोजगारी और गरीबी शामिल हैं। हालाँकि सरकार द्वारा विभिन्न रोजगार योजनाएँ और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, फिर भी देश की बड़ी जनसंख्या के कारण यह समस्या पूरी तरह हल नहीं हो पाई है।
- मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) जैसी योजनाएँ ग्रामीण रोजगार सृजन के लिए महत्वपूर्ण रही हैं।
- गरीबी उन्मूलन के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना जैसी कई सरकारी योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
10. सरकारी नीतियाँ और सुधार (Government Policies and Reforms)
सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कई महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार लागू किए हैं। इनमें 1991 का आर्थिक उदारीकरण, मुद्रा सुधार, GST (Goods and Services Tax) का कार्यान्वयन, और आत्मनिर्भर भारत अभियान प्रमुख हैं।
- आत्मनिर्भर भारत: इस अभियान का उद्देश्य भारत को आत्मनिर्भर बनाना और घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना है।
- जीएसटी (GST): इस कर प्रणाली ने पूरे देश में एक एकीकृत बाजार की स्थापना की है।
निष्कर्ष:
भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी विविधता, विशाल जनसंख्या और तेजी से विकसित होते सेवा और औद्योगिक क्षेत्रों के कारण वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण है। कृषि, सेवा क्षेत्र, और औद्योगिक विकास के साथ-साथ नवाचार और स्टार्टअप्स का उदय भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर ले जा रहा है। हालाँकि, बेरोजगारी, गरीबी, और आर्थिक असमानता जैसी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं, जिन पर सरकार और समाज को ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ
भारतीय अर्थव्यवस्था, जो विकासशील देशों में से एक है, अनेक अवसरों के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही है। ये चुनौतियाँ आर्थिक विकास, सामाजिक समानता, और समग्र कल्याण में बाधा डाल सकती हैं। यहाँ भारतीय अर्थव्यवस्था की कुछ प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण किया गया है:
1. बेरोजगारी (Unemployment)
- स्थिति: भारत की विशाल जनसंख्या के कारण बेरोजगारी एक गंभीर समस्या बन गई है। शहरों में रोजगार के अवसर सीमित हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में भी समुचित कार्य की कमी है।
- कारण: शिक्षा और कौशल विकास की कमी, प्रौद्योगिकी में बदलाव, और औद्योगिक विकास की धीमी गति।
2. गरीबी (Poverty)
- स्थिति: भारत में अभी भी एक बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही है। यह सामाजिक और आर्थिक विकास में बाधक बनता है।
- कारण: आर्थिक असमानता, शिक्षा की कमी, और स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता।
3. आर्थिक असमानता (Economic Inequality)
- स्थिति: भारत में आय और संपत्ति का वितरण अत्यधिक असमान है, जिससे अमीर और गरीब के बीच का अंतर बढ़ रहा है।
- कारण: सामजिक विभाजन, शिक्षण अवसरों की कमी, और आर्थिक नीतियों में पक्षपात।
4. भ्रष्टाचार (Corruption)
- स्थिति: सरकारी और निजी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती है, जो विकास और निवेश को प्रभावित करता है।
- कारण: कमजोर प्रशासनिक ढाँचा, पारदर्शिता की कमी, और प्रभावी कानूनों की अनुपस्थिति।
5. शिक्षा और कौशल विकास की कमी (Lack of Education and Skill Development)
- स्थिति: भारतीय श्रम शक्ति में शिक्षा और कौशल की कमी है, जो रोजगार के अवसरों को सीमित करती है।
- कारण: शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी, और व्यावसायिक प्रशिक्षण की अपर्याप्तता।
6. महंगाई (Inflation)
- स्थिति: महंगाई के कारण सामान्य नागरिकों की क्रय शक्ति में कमी आ रही है, जिससे जीवन यापन की लागत बढ़ रही है।
- कारण: कृषि उत्पादन में कमी, कच्चे माल की बढ़ती कीमतें, और वैश्विक बाजारों में उतार-चढ़ाव।
7. आधारभूत ढाँचे की कमी (Infrastructure Deficiency)
- स्थिति: भारत में परिवहन, ऊर्जा, स्वास्थ्य, और अन्य आधारभूत ढाँचे की कमी है, जो आर्थिक विकास में बाधा डालती है।
- कारण: सरकारी निवेश की कमी, योजनाओं का सही क्रियान्वयन, और निजी निवेश का अभाव।
8. वातावरणीय चुनौतियाँ (Environmental Challenges)
- स्थिति: जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, और प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरे पैदा कर रहे हैं।
- कारण: औद्योगिककरण, शहरीकरण, और कृषि गतिविधियों में वृद्धि।
9. वैश्विक प्रतिस्पर्धा (Global Competition)
- स्थिति: वैश्विक बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा भारत के उत्पादों की मांग को प्रभावित कर सकती है।
- कारण: अन्य विकासशील देशों के साथ प्रतिस्पर्धा, तकनीकी परिवर्तन, और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता।
10. संविधानिक और नीतिगत चुनौतियाँ (Policy and Institutional Challenges)
- स्थिति: नीतियों में स्थिरता की कमी और प्रशासनिक कमजोरियों के कारण योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।
- कारण: राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, जटिल प्रक्रियाएँ, और नीतियों का समय पर कार्यान्वयन नहीं होना।
निष्कर्ष:
भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ जटिल और विविध हैं, लेकिन उचित नीतियों, प्रशासनिक सुधारों, और सामाजिक जागरूकता के माध्यम से इनका समाधान किया जा सकता है। सरकार और समाज को मिलकर इन समस्याओं का सामना करना होगा ताकि भारत को एक मजबूत और स्थायी अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ाया जा सके।
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