किसान संकट

परिचय: किसान संकट (Farmer Crisis) भारत में एक महत्वपूर्ण और ज्वलंत मुद्दा है, जिसका सीधा संबंध देश की कृषि व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक ढांचे से है। भारतीय कृषि प्रधान देश है, जहां जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से किसानों की स्थिति लगातार दयनीय होती जा रही है, जिसे ‘किसान संकट’ के रूप में जाना जाता है। इस संकट के कई आयाम और कारण हैं, जो आर्थिक, सामाजिक, और पर्यावरणीय चुनौतियों से जुड़े हैं।

किसान संकट के मुख्य कारण:

  1. अनिश्चित और कम आय: भारतीय किसान अपनी आय का बड़ा हिस्सा कृषि उपज की बिक्री से प्राप्त करते हैं। परंतु, कृषि उत्पादों के मूल्यों में भारी अस्थिरता और लागत बढ़ने के कारण किसानों की आय बहुत कम हो जाती है। बाजार में बिचौलियों की भूमिका और उचित मूल्य निर्धारण की कमी के कारण उन्हें अक्सर अपने उत्पादों के लिए न्यूनतम मूल्य ही मिल पाता है।
  2. प्राकृतिक आपदाएं और जलवायु परिवर्तन: सूखा, बाढ़, अनियमित मानसून, और तापमान में बदलाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलें प्रभावित होती हैं। जलवायु परिवर्तन ने कृषि उत्पादन को और भी अनिश्चित बना दिया है, जिससे किसान अक्सर कर्ज में डूब जाते हैं।
  3. कर्ज का बढ़ता बोझ: कई किसान अपनी कृषि जरूरतों को पूरा करने के लिए साहूकारों या बैंकों से ऋण लेते हैं। लेकिन फसल के खराब होने या उचित मूल्य न मिलने की स्थिति में वे ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं। नतीजतन, किसान आत्महत्या जैसी भयावह स्थितियों तक पहुंच जाते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, हजारों किसान कर्ज के दबाव में आत्महत्या कर चुके हैं।
  4. सिंचाई की कमी और जल संकट: भारतीय कृषि अभी भी मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करती है। सिंचाई की सुविधाओं की कमी और जल प्रबंधन में खामियों के कारण किसान पर्याप्त पानी नहीं प्राप्त कर पाते, जिससे उनकी फसलें नष्ट हो जाती हैं।
  5. नीतिगत विफलताएं: भारतीय कृषि के लिए नीतियां बनाई तो जाती हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में कई कमियां रहती हैं। छोटे और सीमांत किसानों तक इन योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाता। इसके अतिरिक्त, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और बाजार की संरचना में भी सुधार की आवश्यकता है।
  6. बिचौलियों का वर्चस्व: कृषि उत्पादों की बिक्री में बिचौलियों की भूमिका किसानों के लिए हानिकारक है। बिचौलिए किसानों से सस्ते में उत्पाद खरीदते हैं और बाजार में ऊंचे दामों पर बेचते हैं। इससे किसान अपने उत्पादों के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं।

किसान संकट के प्रभाव:

  1. किसान आत्महत्याएं: कर्ज का बोझ और प्राकृतिक आपदाओं के कारण किसान आत्महत्याएं करते हैं। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और तेलंगाना जैसे राज्यों में यह समस्या अधिक गंभीर है।
  2. ग्रामीण पलायन: किसान संकट का एक और महत्वपूर्ण प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन है। बेहतर आजीविका और रोजगार के अवसरों की तलाश में किसान शहरों का रुख कर रहे हैं, जिससे ग्रामीण जनसंख्या घट रही है।
  3. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर बहुत हद तक निर्भर करती है। किसान संकट का असर न केवल कृषि उत्पादन पर बल्कि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ता है। खाद्य उत्पादन में कमी, महंगाई, और आर्थिक असमानता जैसे समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

किसान संकट से निपटने के उपाय:

  1. उचित मूल्य निर्धारण और MSP की सुदृढ़ता: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बेहतर क्रियान्वयन के माध्यम से किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिलना चाहिए। इसके लिए सरकार को MSP नीति को प्रभावी तरीके से लागू करना होगा और किसानों को उनके उत्पादों का बाजार में उचित मूल्य दिलाना होगा।
  2. कर्ज माफी और कम ब्याज दरें: किसानों के लिए कर्ज माफी योजनाओं और कम ब्याज दरों वाली ऋण सुविधाओं को बढ़ावा देना चाहिए। इसके साथ ही साहूकारों के शोषण से बचने के लिए कर्ज देने की प्रक्रिया को और सरल और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
  3. सिंचाई की सुविधाएं और जल प्रबंधन: सिंचाई की बेहतर सुविधाएं और जल प्रबंधन की योजनाएं किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से बचाने में मददगार साबित हो सकती हैं। सूखे और बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाव के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाने चाहिए।
  4. फसल बीमा योजना का विस्तार: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) जैसी योजनाओं को अधिक किसानों तक पहुंचाना चाहिए। फसल बीमा योजनाओं का सही क्रियान्वयन किसानों की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा सकता है, ताकि फसल खराब होने की स्थिति में उन्हें मुआवजा मिल सके।
  5. सशक्त किसान संगठनों का निर्माण: किसानों के संगठन बनाकर उनकी सामूहिक शक्ति को बढ़ावा देना चाहिए। इससे किसानों को बाजार में अपनी उपज बेचने और उचित मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  6. तकनीकी प्रशिक्षण और जागरूकता: किसानों को नई तकनीकों, जैविक खेती, और आधुनिक कृषि पद्धतियों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। इसके लिए उन्हें कृषि प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता प्रदान करनी चाहिए, जिससे वे बेहतर उत्पादन कर सकें और अपने आय स्रोतों को सुदृढ़ कर सकें।

किसान संकट के प्रभाव को कम करने हेतु सरकारी योजना :

किसान संकट सूचकांक:

आईसीएआर के तहत आने वाली संस्था केंद्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान भारत के लिए अपने तरह के पहले “किसान संकट सूचकांक” नामक एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित कर रहा है।

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